रणभूमि
दूर बैठे कुच्छ कर न सकें
सिवाए मुह से बकार के
छेड़ दो संग्राम आज
जो दे गाली तेरे स्वाभिमान पे !
लगा रक्त तिलक ,
ए वीर झलक
देख सूर्य ललाट ,
तू कर शंख नाद
निकाल के कतार ,
तू बढ़ ज़रा
न पलट आज ,
जब तू चल पड़ा
आज उठा है ,
तू उठा गदा
कर खंड खंड ,
इनको अपनी धार से !
खूब ढाये सितम
न कभी हुए ये नम ,
जब तू था लाचार
अपने हाल पे ;
न सोच जरा , तू न कर दया
बस कदम बढ़ा ,तू चढ़ता ही जा
आज है समा , तू है जवान
इंका सितम , तू इनको गिना ;
हर वार आज ऐसा चला
जो काटे , चार एक धार से !
तू आगे बढ़ , आ जीले सफल
लिख दे गाथा , रंग लाल से
फिर देख तू ये निर्जीव धारा
खिलखिला उठे तेरी ताल पे !
जब वीर सिंह निकल पड़ें
रणभूमि मे दहाड़ते,
रणभूमि मे दहाड़ते,
सुनके उनकी गर्जना
क्रूर जा छुपे पहाड़ पे !
क्रूर जा छुपे पहाड़ पे !
दूर बैठे कुच्छ कर न सकें
सिवाए मुह से बकार के
छेड़ दो संग्राम आज
जो दे गाली तेरे स्वाभिमान पे !
लगा रक्त तिलक ,
ए वीर झलक
देख सूर्य ललाट ,
तू कर शंख नाद
निकाल के कतार ,
तू बढ़ ज़रा
न पलट आज ,
जब तू चल पड़ा
आज उठा है ,
तू उठा गदा
कर खंड खंड ,
इनको अपनी धार से !
खूब ढाये सितम
न कभी हुए ये नम ,
जब तू था लाचार
अपने हाल पे ;
न सोच जरा , तू न कर दया
बस कदम बढ़ा ,तू चढ़ता ही जा
कोई मार सके , न कोई छू सके
खेल जा , वारों को ढाल पे !आज है समा , तू है जवान
इंका सितम , तू इनको गिना ;
हर वार आज ऐसा चला
जो काटे , चार एक धार से !
तू आगे बढ़ , आ जीले सफल
लिख दे गाथा , रंग लाल से
फिर देख तू ये निर्जीव धारा
खिलखिला उठे तेरी ताल पे !