Thursday, February 24, 2011

रणभूमि

 रणभूमि

जब वीर सिंह  निकल पड़ें
रणभूमि मे  दहाड़ते,
सुनके  उनकी  गर्जना 
क्रूर  जा  छुपे  पहाड़  पे ! 
 
दूर  बैठे  कुच्छ कर  न  सकें
सिवाए  मुह  से  बकार  के
छेड़ दो  संग्राम  आज 
जो  दे  गाली तेरे  स्वाभिमान  पे !

लगा  रक्त  तिलक , 
    ए वीर  झलक
देख  सूर्य  ललाट ,
    तू  कर  शंख  नाद
निकाल  के  कतार ,
    तू  बढ़  ज़रा
न  पलट  आज ,
    जब  तू  चल  पड़ा
आज  उठा  है ,
    तू  उठा  गदा
कर  खंड  खंड ,
    इनको  अपनी धार  से !

खूब  ढाये  सितम
न  कभी  हुए  ये  नम ,
जब  तू  था  लाचार 
अपने  हाल  पे ;

न  सोच  जरा , तू  न  कर  दया
बस  कदम  बढ़ा ,तू  चढ़ता  ही  जा

कोई  मार  सके , न  कोई  छू  सके
खेल  जा , वारों  को  ढाल  पे !

आज  है  समा , तू  है  जवान
इंका सितम , तू  इनको  गिना ;
हर  वार  आज  ऐसा  चला  
जो काटे , चार एक  धार  से !

तू  आगे  बढ़ , आ  जीले  सफल
लिख  दे  गाथा , रंग  लाल  से
फिर  देख  तू  ये  निर्जीव  धारा
खिलखिला उठे  तेरी  ताल  पे !