क्या तेरा है , क्या मेरा है;
अब इन पत्थर से घनेरे बादलों में
कहीं दूर जा छुपा अब सबेरा है !
(2) तरक्की की बुलंदी को छूके
हम कहते हैं की हम सफल हुए,
एक पल जरा पलट के देखो
कितने अपने तुम्हारे पराये हुए !
(3) हम दीपक लेके निकले यहाँ से
पर अब दूर तक जा फैला, अँधेरा है;
इस रंग बदलती दुनिया में ,
क्या तेरा है, क्या मेरा है !
(4) पहले कच्चे घर थे अपने
पर हम सब मिलके रहते थे,
चाचा ताऊ अनगिनत थे अपने
सबके सुख - दुःख में हम बहते थे !
(5) रिश्ते थोड़े अब कम हुए
जब से कागज़ का दौड़ा ये घोडा है,
इस रंग बदलती दुनिया में ,
क्या तेरा है, क्या मेरा है !
(6) हर रात दिवाली थी अपनी
हर दिन रंग से भरते थे,
दूसरों के दुःख में हम भी
डट के सामना करते थे !
(7) अब तो दिवाली की रातों में भी
सुनसान का साम्राज्य सा फैला है,
इस रंग बदलती दुनिया में
क्या तेरा है , क्या मेरा है !
(8) पत्थर के जंगल बनाये हमने,
इलेक्ट्रोनिक्स आइटमों से हम पैक हुए,
जहाँ आशाओं के समंदर बहते थे
वहां निराशाओं का अब बसेरा है !
(9) अब इन कांकक्रीत के जंगलों में
तू इंसान खड़ा अब अकेला है,
इस रंग बदलती दुनिया में,
क्या तेरा है, क्या मेरा है !!
By : Naveen Kumar Singh
May 15,2010
1 comment:
hello bhai....
good yaar abhi bhi accha poet hai...tu...
keep it up....
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