Friday, May 21, 2010

इस रंग बदलती दुनिया में , क्या तेरा है क्या मेरा है

(1)  इस रंग बदलती दुनिया में
      क्या तेरा है , क्या मेरा है;
      अब इन पत्थर से घनेरे बादलों में
      कहीं दूर जा छुपा अब सबेरा है !

(2)  तरक्की की बुलंदी को छूके
      हम कहते हैं की हम सफल हुए,
      एक पल जरा पलट के देखो
      कितने अपने तुम्हारे पराये हुए  !

(3) हम दीपक लेके निकले यहाँ से
      पर अब दूर तक जा फैला, अँधेरा है;
      इस रंग बदलती दुनिया में ,
      क्या तेरा है, क्या मेरा है !

(4)  पहले कच्चे घर थे अपने
      पर हम सब मिलके रहते थे,
     चाचा ताऊ अनगिनत थे अपने
     सबके सुख - दुःख में हम बहते थे  !

(5)  रिश्ते थोड़े अब कम हुए
      जब से कागज़ का दौड़ा ये घोडा है,
      इस रंग बदलती दुनिया में ,
      क्या तेरा है, क्या मेरा है !

(6)  हर रात दिवाली थी अपनी
      हर दिन रंग से भरते थे,
      दूसरों के दुःख में हम भी
      डट के सामना करते थे !

(7)  अब तो दिवाली की रातों में भी
       सुनसान का साम्राज्य सा फैला है,
       इस रंग बदलती दुनिया में
       क्या तेरा है , क्या मेरा है !


(8)  पत्थर के जंगल बनाये हमने,
      इलेक्ट्रोनिक्स आइटमों से हम पैक हुए,
      जहाँ आशाओं के समंदर बहते थे
      वहां निराशाओं का अब बसेरा है !








(9)  अब इन कांकक्रीत के जंगलों में
       तू इंसान खड़ा अब अकेला है,
       इस रंग बदलती दुनिया में,
       क्या तेरा है, क्या मेरा है !!

By : Naveen Kumar Singh
         May 15,2010
        

1 comment:

Rituraj Arya said...

hello bhai....

good yaar abhi bhi accha poet hai...tu...

keep it up....